एक नज़र चाह कर भी मिलाने को तैयार नहीं,
ज़िन्दगी एक पल भी सर उठाने को तैयार नहीं,
नोच खाने को बैठी है एक ज़िन्दगी ज़िन्दगी को कैसे,
क्यों एक लम्हा भी कोई ठहर जाने को तैयार नहीं।
राही (अंजाना)
एक नज़र चाह कर भी मिलाने को तैयार नहीं,
ज़िन्दगी एक पल भी सर उठाने को तैयार नहीं,
नोच खाने को बैठी है एक ज़िन्दगी ज़िन्दगी को कैसे,
क्यों एक लम्हा भी कोई ठहर जाने को तैयार नहीं।
राही (अंजाना)