एक पपीहा बैठा खेत में ,
देख आसमान को चिल्लाएं!
बहुत हुआ सब्र ,
अब तो बरस जाओ प्रभु!
मेरी इच्छाओं पर ,
मेरी अभिलाषाओं पर,
थोड़ा तो बरस जाओ प्रभु!
मेरी मेहनत पर ,
मेरी भूख पर,
थोड़ा तो तरस खाओ प्रभु!
साहूकार बड़ा ही जालिम ठेहरा,
रहता हम पर नजरों का पहरा,
नन्ही नन्ही बेटियां! मेरे घर पर,
और खाली पड़ा कनस्तर रोए ,
आंटा कहां से लाऊं प्रभु!
बहुत हुआ सब्र ,
अब तो बरस जाओ प्रभु!
…….मोहन सिंह मानुष