पपीहे की प्यास
एक पपीहा बैठा खेत में ,
देख आसमान को चिल्लाएं!
बहुत हुआ सब्र ,
अब तो बरस जाओ प्रभु!
मेरी इच्छाओं पर ,
मेरी अभिलाषाओं पर,
थोड़ा तो बरस जाओ प्रभु!
मेरी मेहनत पर ,
मेरी भूख पर,
थोड़ा तो तरस खाओ प्रभु!
साहूकार बड़ा ही जालिम ठेहरा,
रहता हम पर नजरों का पहरा,
नन्ही नन्ही बेटियां! मेरे घर पर,
और खाली पड़ा कनस्तर रोए ,
आंटा कहां से लाऊं प्रभु!
बहुत हुआ सब्र ,
अब तो बरस जाओ प्रभु!
…….मोहन सिंह मानुष
बहुत खूब
बेहतरीन
बहुत-बहुत धन्यवाद
बहुत-बहुत धन्यवाद
कोरोना काल का सजीव चित्रण
बिल्कुल मैडम जी कोरोना काल पर आधारित भी हम इन पंक्तियों को मान सकते हैं।
बहुत-बहुत धन्यवाद 🙏
इसे इस समय किसान की व्यथा से जोड़कर भी देखा जा सकता है। सुंदर अभिव्यक्ति
बिल्कुल प्रयाग सर यह किसान से ही जुड़ी हुई कविता है मैंने यह कविता कुछ समय पहले लिखी थी जब बारिश नहीं हो रही थी। यह एक गरीब किसान जिसका खेती के सिवा कोई और सहारा नहीं होता है , और फिर बारिश के बिना फसल कैसी ,बस किसान के मन की व्यथा है यह कविता
पपीहा किसान का ही प्रतीक है
बाकी किसी और इंसान पर भी हम इसे अभिव्यक्त कर सकते हैं
बहुत-बहुत आभार 🙏 प्रयाग सर
आपका भी आभार इस तरह की संवेदनशील रचना के लिए
Atisunder
हार्दिक धन्यवाद शास्त्री जी
बहुत सुंदर रचना
बहुत बहुत आभार सर