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“परिपक्व बंधन”

हमारे परिपक्व बंधन पर था
घोर अंधेरा छाया
एक भंवरे ने आकर के
तेरा हाल बताया
तेरी बेचैनी पर मेरी आँख
भर आई
तेरी नादानी पर मुझको
हँसी खूब है आई
ये कैसा अल्हण पन है ?
यह फागुन का मौसम है
आ बाँहों में तू आ जा
यह मन अब भी पावन है
है तूने दूरी बनाई
है पास तुझे ही आना
एक वादा अब कर देना
फिर दूर कभी ना जाना….

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