पानी तूने धो दिये, बड़े बड़ों के दाग,
तब भी हो पाया नहीं, मेरा मन बेदाग,
मेरा मन बेदाग, नहीं कुछ साफ भाव हैं,
जूते भीतर कीच, सने गंदले पांव हैं,
कहे लेखनी खूब, रही कवि की नादानी,
जहां दाग थे वहाँ, नहीं पहुँचाया पानी।
पानी तूने धो दिये, बड़े बड़ों के दाग,
तब भी हो पाया नहीं, मेरा मन बेदाग,
मेरा मन बेदाग, नहीं कुछ साफ भाव हैं,
जूते भीतर कीच, सने गंदले पांव हैं,
कहे लेखनी खूब, रही कवि की नादानी,
जहां दाग थे वहाँ, नहीं पहुँचाया पानी।