पानी बरसा ही नहीं, सूख चुके हैं मूल,
अब कैसे जीवन चले, हिय में उठते शूल।
हिय में उठते शूल, जंग पानी को लेकर,
जनता में छिड़ रही, पड़े बर्तन को लेकर।
कहे सतीश अब है, हमको प्रकृति बचानी।
पेड़ लगाओ ताकि, मेघ बरसाये पानी।
पानी बरसा ही नहीं, सूख चुके हैं मूल,
अब कैसे जीवन चले, हिय में उठते शूल।
हिय में उठते शूल, जंग पानी को लेकर,
जनता में छिड़ रही, पड़े बर्तन को लेकर।
कहे सतीश अब है, हमको प्रकृति बचानी।
पेड़ लगाओ ताकि, मेघ बरसाये पानी।