पानी बरसा ही नहीं (कुंडलिया)
पानी बरसा ही नहीं, सूख चुके हैं मूल,
अब कैसे जीवन चले, हिय में उठते शूल।
हिय में उठते शूल, जंग पानी को लेकर,
जनता में छिड़ रही, पड़े बर्तन को लेकर।
कहे सतीश अब है, हमको प्रकृति बचानी।
पेड़ लगाओ ताकि, मेघ बरसाये पानी।
पानी बरसा ही नहीं, सूख चुके हैं मूल,
अब कैसे जीवन चले, हिय में उठते शूल।
हिय में उठते शूल, जंग पानी को लेकर,
जनता में छिड़ रही, पड़े बर्तन को लेकर।
कहे सतीश अब है, हमको प्रकृति बचानी।
पेड़ लगाओ ताकि, मेघ बरसाये पानी।
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Very nice poem
थैंक्स
कहे सतीश अब है, हमको प्रकृति बचानी।
पेड़ लगाओ ताकि, मेघ बरसाये पानी।
____________ अद्भुत लेखनी है सर आपकी, जीवन की, प्रकृति की हर समस्या को कागज पर उतार कर रख देती है समाज के सामने ।कवि सतीश जी का पेड़ लगाने का,ताकि मेघ पानी बरसाए… बहुत खूबसूरत सुझाव, प्रकृति को बचाने की, छंद शैली में बहुत सुंदर कविता
उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु आपको बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत ही सुंदर रचना।
बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत सुंदर रचना
बहुत बहुत धन्यवाद
अति सुंदर कविता
हृदय से धन्यवाद
अतिसुंदर रचना
सादर धन्यवाद
Nice