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पिता पुत्री का संवाद

कविता- पिता पुत्री का संवाद
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तेरे खातिर दर-दर भटके,
हर धर्मों का चौखट चुमू,
आजा बेटी मां के सूनी आंचल में,
मैं सीता मरियम नाम से बोलूं|

तुमको पाने के खातिर मैं,
कहां-कहां नहीं जाता हूं ,
चारों धाम कि यात्रा करके,
तू आए सब से विनती करता हूं|

मान सरोवर बालाजी के धाम गया,
शिर्ड़ी चौखट अंबे मां के शरण गया,
मैहर मां कि यात्रा कर दक्षिण भारत जाता हूं,
दानी बनकर दान करूं गाय की पूजा करता हूं|

शर्म त्याग कर मस्जिद में भी जाता हूं,
सर पर टोपी –
घुटना टेकू तू आए कहता हूं,
व्रत रख,घुटना टेके कईयो रात बिताया था,
धर्म कार्य में दिल खोल के चंदा देता हूं|

ऐसा कोई धर्म नहीं,
जहां मेरी अब पहुंच नहीं,
ऐसा कोई ईश्वर ना,
जिससे किया फरियाद नहीं|

चर्च मे घुटना टेक टेक,
कई दिनों तक रोता था,
मैं लेकर आंखों में आंसू,
ईशा से सब बोल रहा था|

हर मंदिर मस्जिद जा जा,
मै सब को दुख सुनाया हूं,
हार के आया जग से मैं,
अब आशा तुमसे लगाया हूं|

घर आया रोते-रोते मैं,
आंख लगी सोने लगा,
सपना देखा बड़ा भयंकर,
एक लड़की हमसे बोल रही,
एक ही काया एक ही माया-
एक शक्ति की सृष्टि है,
देख व्रत पूजा मैं-
मैं तुमको पाऊं यह मेरी सौभाग्य रही|

जग में आने से डरती हूं,
मां की कोख में पलने से,
भ्रूण हत्या से मर ना जाऊं,
क्या बच पाऊंगी लड़कों से|

देख रूप यौवन मेरा-
कईयों पीछे चल देते,
सारी तपस्या मिट्टी होगी-
शायद पापा मेरे आने से|

भारत को ना गंदा करो,
गंदे हैं कुछ लोग यहां,
जिस कन्या को देवी कहके पूजे,
तीन वर्षीय बच्ची का रेप यहां|

जाति धर्म का आतंक यहा,
कैसे प्रेम को पाऊगी,
हुई सयानी जब मैं पापा,
कैसे अंतर्जातीय प्रेमी से मिलवाऊगी|

सह न पाऊं आपकी ताना,
क्या एसिड से बच पाऊंगी,
जग का ताना सह लूंगी,
बिन कान्हा ना रह पाऊंगी,
सब कुछ अच्छा हो जाए-
एक बात हमें सताती है,
आधी रात को लाश जले,
नरभक्षी से जान बचे,
चलती बस से ,मैं भी चिल्लाऊंगी|

यह सब कुछ तो सपना था,
इसमें कुछ खता भी तो अपना था,
यह संवाद सुनकर कसम लिया हूं,
अब ना बेटी मागू ना हिम्मत था|

कहे “ऋषि” अब जोर लगा कर,
सब कोई बेटी को सम्मान दो,
दहेज प्रथा अब खत्म करो,
लड़कों को संस्कार दो|
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—–ऋषि कुमार “प्रभाकर”—-

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