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पूस की रात

फिर आई वो पूस की काली रात।
मन है व्याकुल, उठा है झंझावात।।

पत्तों से ओस की बूँदें टपकना याद है मुझे।
आँखों से आँसूओं का बहना याद है मुझे।
सन्नाटे को चीरती, तेज धड़कनों की आवाज़,
ख़ामोश ज़ुबाँ, कुछ ना कहना याद है मुझे।
हमारे मोहब्बत के गवाह थे जो सारे,
नदारद हैं वो चाँद तारों की बारात।
फिर आई वो पूस की काली रात।
मन है व्याकुल, उठा है झंझावात।।

कोहरे से धुंधला हुआ वो मंज़र याद है मुझे।
चीरती सर्द हवाओं का ख़ंज़र याद है मुझे।
छुटता हाथों से तेरा हाथ, जुदा होने की बात,
प्यार का चमन, हो चला बंजर याद है मुझे।
तेरी जुदाई का गम रह-रह कर,
हृदय में टीस कर रही कोई बात।
फिर आई वो पूस की काली रात।
मन है व्याकुल, उठा है झंझावात।।

बगैर तुम्हारे रहने का गम रुला गई मुझे।
फिर गुज़रे लम्हों की याद दिला गई मुझे।
फिर से आई है, वही पूस की काली रात,
न जाने कहाँ हो तुम क्यों भूला गई मुझे।
यादों के समंदर में डूबता जा रहा,
मेरे काबू में नहीं हैं, मेरे जज़्बात।
फिर आई वो पूस की काली रात।
मन है व्याकुल, उठा है झंझावात।।

देवेश साखरे ‘देव’

झंझावात- तूफान

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