Site icon Saavan

प्रवासी मजदूर

प्रवासी मजदूर

मजदूर हूं, मजबूर हूं,
कैसी है तड़प हमारी,
या हम जाने, या रब जाने,
आया कैसा चीनी कोरोना,
ले गया सुख-चैन हमारा,
जेब में फूटी कौड़ी नहीं,
छूट गया काम- धाम हमारा,
खाने को पड़ गए लाले,
घर जाना अब है जरूरी हमारा,
जाऊँ या न जाऊँ दोनों तरफ है मौत खड़ी,
मंजिल है मिलोंं दूर फिर भी,
घर जाना है जरूरी हमारा,
कुछ पैदल ही चले गए,
कुछ साइकिल से चले गए,
कुछ रास्ते में ही दुनिया छोड़ गए,
सामने है कोरोना खड़ी,
जाऊं या न जाऊं,
दोनों तरफ है मौत खड़ी,
मंजिल है मिलों दूर फिर भी,
घर जाना है जरूरी हमारा,
महीनों से हूं पिंजरबद्ध पंछी बना,
लॉकडाउन में मैं हूं पड़ा,
ऐसे में आया राहत सरकार का,
प्रवासी मजदूर के लिए चलेगी रेलगाड़ी,
मन खिल गया हमारा,
बुढ़ी माँ मुझे बुला रही,
अब घर जाना है जरूरी हमारा ।

Exit mobile version