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फसल सच की उगाऊंगा

सदा से ही उपेक्षित हूँ
सदा ही हार पाया हूँ
भले ही और आगे भी
निरन्तर हार पाऊंगा
मगर तुझको जमाने
आईना पूरा दिखाऊंगा।
डरूंगा झूठ से तेरे तो
कविता रूठ जायेगी,
अपनी लेखनी से मैं फसल
सच की उगाऊंगा।

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