फसल सच की उगाऊंगा
सदा से ही उपेक्षित हूँ
सदा ही हार पाया हूँ
भले ही और आगे भी
निरन्तर हार पाऊंगा
मगर तुझको जमाने
आईना पूरा दिखाऊंगा।
डरूंगा झूठ से तेरे तो
कविता रूठ जायेगी,
अपनी लेखनी से मैं फसल
सच की उगाऊंगा।
सदा से ही उपेक्षित हूँ
सदा ही हार पाया हूँ
भले ही और आगे भी
निरन्तर हार पाऊंगा
मगर तुझको जमाने
आईना पूरा दिखाऊंगा।
डरूंगा झूठ से तेरे तो
कविता रूठ जायेगी,
अपनी लेखनी से मैं फसल
सच की उगाऊंगा।
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बहुत ही खूबसूरत और प्रखर कविता, वाह सर वाह
डरूंगा झूठ से तेरे तो कविता रूठ जायेगी,अपनी लेखनी से मैं फसल
सच की उगाऊंगा। कवि सतीश जी की लेखनी हमेशा सच ही तो बोलती है । सत्य बोलने की कसम सी खाई है लेखनी ने फिर चाहे कुछ भी हो। बहुत सुंदर भाव और बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।
बहुत सुंदर waah waah
बहुत संवेदनशील मुद्दे पर अति सुंदर कविता
बहुत खूब सर वाह
Very very very nice sir
वाह बहुत बढ़िया
वाह वाह क्या बात है!!!!!!! ¡!!
बेहयरीन