Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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करो परिश्रम ——
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झूठ का पाश
खुद को,झूठ के एक लौह जाल में घेर लिया तुमने झूठ का ये लिहाफ़,क्यों ओढ़ लिया तुमने, ये भी झूठ और वो भी झूठ, हर…
शायरी संग्रह भाग 2 ।।
हमने वहीं लिखा, जो हमने देखा, समझा, जाना, हमपे बीता ।। शायर विकास कुमार 1. खामोश थे, खामोश हैं और खामोश ही रहेंगे तेरी जहां…
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बहुत ही खूबसूरत और प्रखर कविता, वाह सर वाह
डरूंगा झूठ से तेरे तो कविता रूठ जायेगी,अपनी लेखनी से मैं फसल
सच की उगाऊंगा। कवि सतीश जी की लेखनी हमेशा सच ही तो बोलती है । सत्य बोलने की कसम सी खाई है लेखनी ने फिर चाहे कुछ भी हो। बहुत सुंदर भाव और बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।
बहुत सुंदर waah waah
बहुत संवेदनशील मुद्दे पर अति सुंदर कविता
बहुत खूब सर वाह
Very very very nice sir
वाह बहुत बढ़िया
वाह वाह क्या बात है!!!!!!! ¡!!
बेहयरीन