फसल सच की उगाऊंगा

सदा से ही उपेक्षित हूँ
सदा ही हार पाया हूँ
भले ही और आगे भी
निरन्तर हार पाऊंगा
मगर तुझको जमाने
आईना पूरा दिखाऊंगा।
डरूंगा झूठ से तेरे तो
कविता रूठ जायेगी,
अपनी लेखनी से मैं फसल
सच की उगाऊंगा।

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जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

  1. डरूंगा झूठ से तेरे तो कविता रूठ जायेगी,अपनी लेखनी से मैं फसल
    सच की उगाऊंगा। कवि सतीश जी की लेखनी हमेशा सच ही तो बोलती है । सत्य बोलने की कसम सी खाई है लेखनी ने फिर चाहे कुछ भी हो। बहुत सुंदर भाव और बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।

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