फासलों का मंजर
फासलों का मंजर देख कुछ याद आया
किसी अजनबी शहर सा बस ख्याल आया
कोई शोर नहीं किया आईने ने उस वक़्त
जब देख चेहरा अपने कोई सवाल आया
परदे ही परदे में रह गए एहसास अपने
जब खुली आँख तो बस कोई बवाल आया
हर तरफ झूट के अफ़साने फैले नायाब
नाबूद हो गया सच जैसे कोई अकाल आया
ताउम्र ढूंढ़ता फिरा मेरे ऐब की दौलत
लो आज फिर लेके वही मेरे जलाल आया
कहाँ ले चला तस्सवुर बेख़याल ‘अरमान’
देख तेरी आँखों में क्यों मलाल आया
फासलों का मंजर देख कुछ याद आया
किसी अजनबी शहर सा बस ख्याल आया
राजेश ‘अरमान’
व