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बंद खिड़कियों का शहर

यारों ! ये कैसा कहर हो गया।
बंद खिड़कियों का शहर हो गया।।
बाहर बीमारी, भीतर लाचारी
देख आबोहवा भी जहर हो गया।।
मुँह पे पट्टी चढ़ी, पेट में खलबली
दवा संग दुआ भी बेअसर हो गया।।
काम धंधा गया, सब मंदा हुआ
दिन गिन गिन आठों पहर हो गया।
सुन विनती प्रभु, विनयचंद की तू
हर संकट सभी जग जबर हो गया।।

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