बंद खिड़कियों का शहर
यारों ! ये कैसा कहर हो गया।
बंद खिड़कियों का शहर हो गया।।
बाहर बीमारी, भीतर लाचारी
देख आबोहवा भी जहर हो गया।।
मुँह पे पट्टी चढ़ी, पेट में खलबली
दवा संग दुआ भी बेअसर हो गया।।
काम धंधा गया, सब मंदा हुआ
दिन गिन गिन आठों पहर हो गया।
सुन विनती प्रभु, विनयचंद की तू
हर संकट सभी जग जबर हो गया।।
Berynice
बहुत बहुत धन्यवाद
Nice line🙂
Aapka likha Har EK Shabd Moti ke Saman lag raha hai bahut hi Sundar Shabd Rachna
बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत सुंदर लेखन
ईश्वर हम सभी को इस संकट की घड़ी से जल्द उबारे
अति सुन्दर रचना