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बड़े शहर की जिंदगी…

बड़े शहर की जिंदगी को छोड़ ,
अब छोटे शहर की जिंदगी को,
जीकर देख रहे हैं
यहां भी लोग हैं; वहां भी लोग थे,
यहां सोच बड़ी, वहां सोच छोटी ,
न निभाते हैं रिश्ते को,
न जानते हैं इंसानियत को,
कौन आपका अपना है,
कौन आपका पराया,
पर जुड़े हैं अब भी सब,
रुपए की चाह में,
हैसियत की छांव में…….

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