बनाकर कागज़ की कश्तियाँ पानी में बहाते नज़र आते थे,
एक रोज़ मिले थे वो बच्चे जो अपने सपने बड़े बताते थे,
बन्द चार दीवारों से निकलकर खुले आसमान की ठण्डी छावँ में,
इतने सरल सजग जो अक्सर खुली किताब से पढ़े जाते थे।।
राही (अंजाना)
बनाकर कागज़ की कश्तियाँ पानी में बहाते नज़र आते थे,
एक रोज़ मिले थे वो बच्चे जो अपने सपने बड़े बताते थे,
बन्द चार दीवारों से निकलकर खुले आसमान की ठण्डी छावँ में,
इतने सरल सजग जो अक्सर खुली किताब से पढ़े जाते थे।।
राही (अंजाना)