बन्द मुट्ठी में कई राज़ दबाये बैठा हूँ,
अनगिनत शहीदों के कई नाम छुपाये बैठा हूँ,
मेरी खातिर होती रही हैं कितनी ही कुर्बानी,
मैं बेज़ुबान सही पर हर जवान की पहचान सजाये बैठा हूँ,
रंग भी गजब हैं और रूह भी अजब हैं ज़माने मे साहिब,
मगर मैं (तिरंगा)तीन रंगों में ही सारा हिन्दुस्तान समाये बैठा हूँ॥
राही (अंजाना)