लोभी दुनियां में जी गई मैं,
विष का प्याला पी गई मैं
ना मीरा हूं ना नीलकंठ,
फिर भी सब झेल गई
मानों प्राणों पर खेल गई,
हुई भावहीन,हुई उदासीन
कंचन सी निखर गई,
टूटे मोती सी बिखर गई
अंतर्मुखी सब कहने लगे,
सबका कहना सह गई मैं,
बहती नदिया सी बह गई मैं