बहते ही रहते है हम हवाओं की तरह।
बहते ही रहते है हम हवाओं की तरह।
मगर बदलेंगे नही कभी अदाओं की तरह।।
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कल अचानक ही मौसम बदल गया था ऐसे।
जैसे वो मिला हो हमें कही घटाओं की तरह।
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पहली बार चले तो गिरे उलझ उलझकर।
अब बहते है पहाडों में दरियाओं की तरह।।
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ज़िंदगी भर कहते रहे हम महफिल महफिल।
जबकि तन्हाई का असर था दवाओं की तरह।।
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इक बात कहे हमनें खुद से भी फरेब किया था।
बद्दुवाओं को भी कबूल किया दुवाओं की तरह।।
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हमारे हालातों पर सवालातो का दौर चलने दो।
साहिल बिखेरेंगे रोशनी जलती शम्माओ की तरह।।
@@@@RK@@@@
वाह बहुत सुंदर