सामने बोल भी नहीं पाये
आँख हम खोल भी नहीं पाये
था वजन बात में भरा कितना
उसको हम तोल भी नहीं पाये।
आँख चुँधिया गई थी जब अपनी
धूल औरों में झोंक कर आये,
गा चुके गीत जब थे वे अपने
तब कहीं फाग हम सुना आये।
उनकी कोशिश थी जल छिड़कने की
उस जगह आग हम लगा आये,
साफ कालीन-दन बिछाए थे,
उनमें नौ दाग लगाकर आये।
जितनी शंका भरी थी उनके मन
सारी हम दूर भागकर आये,
तुम हमारे हो हम तुम्हारे हैं
बिन कहे बात बताकर आये ।
वे कभी खत लिखें या आ जायें,
सोचकर हम पता लिखा आये,
दिल की सुनते हैं नहीं ठुकराते
यह नियम हम उन्हें सिखा आये।