स्वर्णिम ओज सिर मुकुट धारणी,विभूषित चन्द्र ललाट पर
गुंजन करे ये मधुर कल-कल, केशिक हिमाद्रि सवारकर
आभामय है मुखमडंल तेरा, स्नेहपू्र्णिता अतंरमन।
अभिवादन माँ भारती, मातृभूमि त्वमेव् नमन।।
बेल-लताँए विराजित ऐसे, कल्पित है जैसे कुण्डल
ओढ दुशाला तुम वन-खलिहन का ,जैसे हरित कोमल मखमल
तेरा यह श्रृंगार अतुलनीय, भावविभोर कर बैठे मन।
वन्दे तु परिमुग्ध धरित्री, धन्य हे धरा अमूल्यम्।।
वाम हस्त तुम खडग धरे, दाहिने में अंगार तुम
नेत्र-चक्षु सब दहक रहे, त्राहि-त्राहि पुकारे जन-जन
स्वाँग रचे रिपु पग-पग गृह में, इन दुष्टों का करो दमन।
पूजनीय हे सिंधुप्रिये तुम, मातृभूमि त्वमेव् नमन ।।