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भारत रत्न डा. राजेन्द्र प्रसाद जी के जन्मदिन पर विशेष

तीन दिसम्बर अठारह सौ चौरासी
का पावन दिवस मनोहर था।
घर-घर मंगल गान गुंजते
बजे बधाईयाँ संग सोहर था।।
आसमान से टपक सितारा
आया बिहार के एक गांव में।
सारण उर्फ सीवान जिले के
जीरादेई नामक सुंदर गांव में।।
लाल थे वो महादेव सहाय के
कमलेश्वरी देवी के आँखों का तारा।
पाँच भाई-बहनों में राजेन्द्र
थे सबसे छोटा और सबसे प्यारा ।।
जगदेव सहाय थे चाचाजी
जमींदार बड़े और दिल के प्यारे।
करते थे नित प्यार इन्हें और
“बाबू-बाबू ” कह सदा पुकारे।।
देर रात से पहले सोते
और जग जाते तड़के-तड़के।
माँ- बापू और दादा-दादी
सबको जगाते एक एक करके।।
फ़ारसी पढ़े अंग्रेजी पढ़े
हिन्दी उर्दू बंगाली का था ज्ञान।
गुजराती और संस्कृत में भी
देते थे बड़ सुन्दर व्याख्यान ।।
जिला स्कूल छपरा और
टी. के. घोष एकेडमी पटना रहकर।
स्कूली शिक्षा पूर्ण किए और
कलकत्ता विश्वविद्यालय में जाकर।।
एल.एल. एम की डिग्री पाई
गोल्ड मेडल के साथ -साथ।
भागलपुर में करी वकालत
जन सेवक बन साथ-साथ।।
सत्य सादगी और सरलता
सेवा धर्म को अपनाया था।
चम्पारण के आन्दोलन में
गांधीजी का संग पाया था।।
विभिन्न पदों को किया सुशोभित
सरकारी और निजी संस्था।
बचपन बीता धार्मिक बनकर
रामायण में थी पूरी आस्था।।
आजाद हुआ भारत जब
राम राज्य का देखा सपना ।
देकर बहुमूल्य सहयोग
भारत को संविधान दिया अपना।।
प्रथम नागरिक भारत का
और राष्ट्रपति पद किया सुशोभित।
छब्बीस जनवरी पचास से
चौदह मई बासठ तक रहे सुशोभित।।
भारत रत्न की मिली उपाधी
बेशक भारत के एक रत्न थे ।
मानव के कल्याण के खातिर
करते सदा-सदा प्रयत्न थे ।।
पटना के सदाक़त आश्रम में
बीता उनका अन्तिम काल।
अठाईस फरवरी उन्नीस सौ तिरसठ
को जा समाए काल के गाल।।
निधन सदा से देह की होती
आत्मा नहीं कभी मरती है।
मरकर भी महामानव की
सुकृति सदा अमर रहती है।।

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