मन के भीतर करो उजाला
जब बदलियाॅं भरी जल से,
वह बारिश बन बरसने लगी।
जब पुष्प में आया सुवास,
पवन में सुगन्धि बिखरने लगी।
जब दीपक को जलने का बल मिला,
वह प्रकाशित हो उजाला देने लगा।
बिन कोई प्रयास किए ही,
सब स्वत: होने लगा।
जो आपके भीतर ही है,
वही आप दे पाऍंगे।
ख़ुशियाँ हों या फ़िर हो ग़म,
उजाला हो या फिर हो तम।
जो भी होगा वही करोगे वितरित,
मन के भीतर करो उजाला,
ना करना मन विचलित॥
_____✍गीता
अतिसुंदर