प्रदूषण का कहर

हवा में जहर है, प्रदूषण का कहर है। सांसों पर बंधी हैं बेड़ियाँ जी हाँ ये दिल्ली शहर है। अरुणिमा मद्धम हुई है, कौमुदी कुम्हलाने…

अंजुमन

दिल के वीराने में एक अंजुमन हम भी सजाते हैं। जब भी होते हैं तन्हा आपको उसमें बिठाते हैं। आप तो भूल गए हो यादें…

कड़वा सच

सच है एक कड़वी दवा, इसको धीरे-धीरे पिला। आदत तो हो जाने दे, इतना सच कैसे झेलूॅं, चाक सीना तो सी लूॅ़ं। भरम में ही…

ख़ामोश कलम

ख़ामोश है कलम, कर रही इन्तज़ार है। कब कोई लेख लिखूँ मैं, वो देख रही बारम्बार है। पी कर अश्क अपने एक दिन, सचमुच कलम…

पहचान

जब दिल से दिल के तार जुड़े हों, किसी पहचान की जरूरत कहाँ। नाम भले ही गुम जाए, चाहे चेहरा भी बदल जाए.. आपकी आवाज़…

नव-प्रभात

कनक तश्तरी सा आलोकित भानु लुटा रहा है स्वर्ण रश्मियाँ । दूर-दूर तक बिखरा सोना, हर पत्ती हर डाली -डाली रौशन हुआ है हर कोना-कोना।…

धूप

धूप समेटकर अपने सुनहरी वसन, चल पड़ी प्रीतम से करने मिलन ओढ़ कर सितारों भरी काली चुनर पलकों में सुनहरे ख्वाब सजाकर कर के वादा…

*धूप*

धूप समेटकर अपने सुनहरी वसन, चल पड़ी प्रीतम से करने मिलन ओढ़ कर सितारों भरी काली चुनर पलकों में सुनहरे ख्वाब सजाकर कर के वादा…

सच्चा मित्र

ग़मगीन हालत में जो ला सके, अधरों पर मुस्कान। वही तो सच्चा मित्र है, उसकी निस्वार्थ मोहब्बत है महान। सुख-समय में करे जो हंसी-मजाक भी,…

मेरी कलम से

जब-जब मेरी कलम चले, ऐसा कुछ लिखती जाऊँ। जीवन की सच्चाई कभी और कभी कल्पना में खो जाऊँ। जन-जन की बात लिखूँ मैं, और कभी…

तुम्हारे बिना..

सूनी-सूनी सी फ़िज़ाऍं हैं, सूनी सी सब दिशाऍं हैं। आप नहीं हैं मेरी ज़िन्दगी में अगर, सूनी-सूनी सी लगती है ड़गर। हमें ही हमारी नहीं…

लेखन

मन के भाव लिखा करती हूँ, ज़िन्दगी की धूप और छाॅंव लिखा करती हूँ। कभी “खुशियाँ” तो कभी, “घाव” लिखा करती हूँ। आभार आपका आप…

बरसात

सर्द पवन का झोंका लेकर, आई ये बरसात है। बे मौसम ही आई लेकिन, कुछ तो इसमें बात है। भीगे सारे बाग-बगीचे, भीगे पुष्प और…

दशहरा

मन के रावण को मारने के लिए, दशहरा मनाया जाता है। किस-किस ने रावण को मारा कौन राम-मय हो कर आया है। दशहरा शुभ हो….…

तनहाइयाँ

दिल के दर्द को कैसे तुम्हें समझाएँ, हैं बहुत तनहा, यह कैसे तुम्हें बताऍं। साॅंझ, सवेरे सूरज की लाली है, मगर दिल उमंगों से खाली…

आ गया सूरज

वृक्षों पर आ गया सूरज, धरा पर छा गया सूरज। बिखराकर अपनी स्वर्ण रश्मियाँ, गीत कोई गा गया सूरज। हल लेकर निकल पड़े किसान, देखो…

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