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मन बाहर ले आओ

छोड़ो बात दूजे की
मनाओ अपने मन में होली,
खेल सको तो खेलो हमसे
मन बाहर ले आओ।
बाहर-भीतर एक ही रंग हो
अलग-अलग नहीं डालो।
भीतर स्याह बाहर दिलकश
ऐसा मुझे न बनाओ,
मन बाहर ले आओ,
अगर नहीं प्रिय तुमसे हो यह
त्याग मुझे, निज पथ लो,
मैं पाहन तुम भी
बन शिलखंड,
ऐसे ही समय बिता दो।
मन बाहर ले आओ प्रीतम
छोड़ो बात दूजे की
छोड़ो बात दूजे की
मनाओ मेरे संग में होली।

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