मन बाहर ले आओ
छोड़ो बात दूजे की
मनाओ अपने मन में होली,
खेल सको तो खेलो हमसे
मन बाहर ले आओ।
बाहर-भीतर एक ही रंग हो
अलग-अलग नहीं डालो।
भीतर स्याह बाहर दिलकश
ऐसा मुझे न बनाओ,
मन बाहर ले आओ,
अगर नहीं प्रिय तुमसे हो यह
त्याग मुझे, निज पथ लो,
मैं पाहन तुम भी
बन शिलखंड,
ऐसे ही समय बिता दो।
मन बाहर ले आओ प्रीतम
छोड़ो बात दूजे की
छोड़ो बात दूजे की
मनाओ मेरे संग में होली।
बहुत ही सुंदर काव्य सरिता वाह
बहुत खूब पाण्डेय जी
बाहर-भीतर एक ही रंग हो
अलग-अलग नहीं डालो।
भीतर स्याह बाहर दिलकश
____________ कवि सतीश जी की लाजवाब अभिव्यक्ति लिए हुए बहुत ही सुंदर रचना अति उत्तम प्रस्तुति और उम्दा लेखन
बहुत सुंदर
Very nice
अतिसुंदर रचना
छोड़ो बात दूजे की
छोड़ो बात दूजे की
मनाओ मेरे संग में होली।
Jay ram jee ki
बहुत ही लाजवाब अभिव्यक्ति उम्दा लेखन प्रेम से होली मनाने के बाद कहती हुई तथा मानवता का पाठ पढ़ाती हुई रचना