बा मुश्किल छोड़ जाती थी वो माँ मुझे जिस मकान में,
आज सूना है घर का हर एक कोना उस मकान में,
सुनाती थी दिन रात माँ जहाँ साफ़ सफाई के पीछे,
आज लगे हैं यादों के घने जाले उस मकान में,
सुन लेती थी माँ आहट जहाँ मेरे कदमों की,
लगा हुआ है आज ताला खुशियों के उस मकान मे॥
राही (अंजाना)