मानव
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अहंकार का पुतला बन जा
तज दे भली-भला,
अरे क्या करता है मानव होकर
सत्य की राह चला |
तू मानव रहकर क्या पाएगा
दानव बन जा,
दुष्कर है नम रहना
सहज है मुफ्त मे तन जा ||
हो जाए जब पुष्टि वहम की
श्रेष्ठ है सबसे तू ही
उस दिन ही तेरी काया
रह जाएगी न यूँ ही
हर प्राणी मन मैला होगा
तू ही दूध-धुला
अरे क्या करता है मानव होकर
सत्य की राह चला
तू मानव रहकर…
दुष्कर है नम…
दुर्लभ तन मे वाश मिला
ये दुनिया देखी भाली
बिन मतलब की बात है कोरी
कर इसकी रखवाली
तू तो बस इसके विनाश की
चाल पे चाल चला
अरे क्या करता है मानव होकर
सत्य की राह चला
तू मानव रहकर…
दुष्कर है नम…
बाल्य काल से तरुनाई तक
जितना प्यार मिला
पूर्ण युवा तन बल पौरुष
मद में अब इसे भुला
अति-आचार प्रदर्षित कर अब
बन जा काल-बला
अरे क्या करता है मानव होकर
सत्य की राह चला
तू मानव रहकर…
दुष्कर है नम…
देव कहाना उचित नही था
असुर ही था अति-उत्तम
उस पद से इन्सान बना
शैतान है अब सर्वोत्तम
यूँ ही उजड़ना जग दुर्भाग्य है
अटल जो नही टला
अरे क्या करता है मानव होकर
सत्य की राह चला
तू मानव रहकर…
दुष्कर है नम…
…अवदान शिवगढ़ी
२१/०८/२००१५
०७:०२ बजे, साँझ
लुधियाना |
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