“मित्र”
वो मेरा सगा नहीं है ,
मगर भाई से बढ़कर है।
कोमिडन नहीं है,
मगर हंसाता है;
कार्टून से बढ़कर है।
थोड़ा जिदी है,
मगर इतराता नहीं है।
बेपरवाह है खुद के लिए,
पर मेरे लिए!
जान देने से घबराता नहीं है।
कभी भले-बुरे के लिए,
गालियां देने वाला!
सनकी बाप,
तो कभी प्यार देने वाली ,
मां सा; बन जाता है।
सब बेमतलब सा
लगता है ,
जब वो ना हो साथ।
हर मर्ज की दवा,
मिले या ना मिले,
मगर मेरे चेहरे पर मुस्कान
उसके साथ होने से मिल जाती हैं।
——मोहन सिंह मानुष