मिले वो ज़ख्म
मिले वो ज़ख्म के सारे अजीब लगते हैं
पराये अपने हमारे अजीब लगते हैं
जो तुम थि साथ अँधेरे से दिल बहेलता था
जो तुम नहीँ तो सितारे अजीब लगते हैं
कली कि शक्ल से मासूमियत झलकती है
गूलों नें हाँथ पसारे अजीब लगते हैं
अगर चे क़ाबिलियत और न अहलियत कोई
सिफारिशात के धारे अजीब लगते हैं
मिज़ाजे इश्को महब्ब्त बदल गया आरिफ
ये आज इश्क के मारे अजीब लगते हैं
आरिफ जाफरी
Behatreen 🙂
Shukriya
Shukriya
kya baat he..bahut khub
Good Poem 🙂
Shukriya ji