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मेरे घर पर आए चोर

एक रात की बात बताऊं मित्रों ,
मेरे घर पर आए चोर ।
थी मैं अकेली उस दिन घर पर,
मुझ पर आज़माने लग गए ज़ोर ।
“पैसे देदो, ज़ेवर देदो”, उनकी मांगों का ना था छोर
एक ने मुंह बंद किया मेरा,
दूजे ने पिस्तौल लगाई
मैने भी फिर तुरंत अपनी थोड़ी अक्ल दौड़ाई,
ले गई दूजे कमरे में, जहां रौशनी थी नहीं।
झटका उसका हाथ मैंने ,मुंह पर फ़िर एक चपत लगाई
दौड़ के खिड़की खोली मैंने, मचा दिया जी भर के शोर,
मदद करो, सब मदद करो,
मेरे घर पर आए चोर।
सारे पड़ोसी भागे लेकर लाठी, डंडे, रस्सी की डोर।
सिर पर पैर रख कर भागे,
भागे सरपट देखो चोर ।।

नोट:– ये कविता मेरे जीवन की सत्य घटना पर आधारित है।

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