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मेहनत-मंजिल

मनुष्य सोचता है
मंजिल दिखे तो ,
तब मैं मेहनत करूँ।
मंजिल सोचती है
मेहनत करे तो
उसे झलक दे सकूँ।
ऐसे में जिसने
कर्मपथ को अपना
कदम है बढ़ाया,
उसी ने हमेशा
मंजिल को पाया।
जिसने दिखाया
आलस्य खुद में
उसने स्वयं का
पथ भटका पाया।
जिसने निगाहों को
शिखर पर टिकाया
उसने स्वयं को
मंजिल में पाया।
जिसने भी मन अपना
भटका दिया,
उसने स्वयं को
अटका दिया।
कल के लिए काम
लटका दिया
उसने स्वयं को
झटका दिया।

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