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मैंने देखा है ,शैतान ! इंसानों में

दानव तो है, यूं ही बदनाम
ग्रंथ-पुराणों में ,
मैंने देखा है,शैतान! इंसानों में।

रूह कांप जाए; हृदय फट जाए,
हैवानियत की हदें पैर फैलाए‌।
शर्मसार होती है मानवता ;
सुर्ख़ियों के गलियारों में,
मैंने देखा है, शैतान! इंसानों में।

वो कोमल सी,
नन्ही पंखुड़ी जैसी,
करहाहट ; उसकी पपीहे जैसी,
पर; नोचता रहा ,उसे वो हैवान!
बहता खून; उसके शोषण की कहानी थी ।
फिर भी बच जाते , ऐसे खूंखार!
सत्ता ,कानून के दलालों से,
मैंने देखा है, शैतान! इंसानों में।

—-मोहन सिंह मानुष

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