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“मैं आदमी-सा था”

सूरत तो उसकी देखी, पर सीरत नहीं देखी;
ღღ_है मेरी खता ये, कि मैं आदमी-सा था !
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ღღ_वक़्त के साथ उनके, बदला किये ख्याल;
इन हालात में बिछडना, तो लाज़मी-सा था!!……‪#‎अक्स

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