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°°° मैं तुम्हें फिर मिलूंगी…..

मैं तुम्हें फिर मिलूंगी
किसी टूटे दिल के
अनगिनत टुकड़ो में,
किसी गरीब की फटी हुई
झोली की सच्चाई में,
एक कटी पतंग की
बेसहारा होती उम्मीदों में
मैं तुम्हें फिर मिलूंगी….

कांच के उन टुकड़ों में
जिसमें मेरा अक्श देखकर
तुमने तोड़ दिया होगा
मैं तुम्हें फिर मिलूंगी…

बेसहारा होते पंछियों के
छूटते घरौंदों में,
बेपरवाह आशिक की
बेशर्म हरकतों में
मेरी जुल्फों के जैसी
घनघोर घटाओं में
मैं तुम्हें फिर मिलूंगी…

बरसात की हर बूंद में
खाली कमरे की खामोंशियों में
कंघियों की कौम में,
कलियों की नर्मियों में,
तुम्हारे दिल की हर धड़कन में
मैं तुम्हें फिर मिलूंगी…..

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