°°° मैं तुम्हें फिर मिलूंगी…..
मैं तुम्हें फिर मिलूंगी
किसी टूटे दिल के
अनगिनत टुकड़ो में,
किसी गरीब की फटी हुई
झोली की सच्चाई में,
एक कटी पतंग की
बेसहारा होती उम्मीदों में
मैं तुम्हें फिर मिलूंगी….
कांच के उन टुकड़ों में
जिसमें मेरा अक्श देखकर
तुमने तोड़ दिया होगा
मैं तुम्हें फिर मिलूंगी…
बेसहारा होते पंछियों के
छूटते घरौंदों में,
बेपरवाह आशिक की
बेशर्म हरकतों में
मेरी जुल्फों के जैसी
घनघोर घटाओं में
मैं तुम्हें फिर मिलूंगी…
बरसात की हर बूंद में
खाली कमरे की खामोंशियों में
कंघियों की कौम में,
कलियों की नर्मियों में,
तुम्हारे दिल की हर धड़कन में
मैं तुम्हें फिर मिलूंगी…..
मैं तुम्हें फिर मिलूंगी
बहुत खूब
हिम्मत और हौसला बुलंद हो
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मैं तुम्हें फिर मिलूंगी
बहुत खूब
हिम्मत और हौसला बुलंद हो
Thanks
Great poem on the self
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वाह
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अगर मैं यहां काम किया और अमृता प्रीतम से भी ज्यादा उच्चस्तरीय लगी।
तो कोई समझाना होगा क्योंकि सच बात तो यही है।
कि आपकी कविता अमृता प्रीतम की कविता का
सिर्फ शीर्षक ही नहीं लिए हैं।
बल्कि उसकी आत्मा को अपनी कविता में संजोकर
सुंदर बना रही है जिस की समीक्षा कर पाना बहुत ही मुश्किल है।
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