एक निर्जीव -सी मोटर गाड़ी ।
शानो शौकत की बनी सवारी।।
ये भी मांगे तेल और पानी।
घिस गए पुर्जे हुई पुरानी।।
अपने जैसा वंदा अखीर।
खीचे रिक्शा लगा शरीर ।।
एक अकेला खींच रहा हो।
हम बैठे हो आखिर दो दो।।
खून पसीना बहा रहा है।
रामू से रिक्शा कहा रहा है।।
शर्म नहीं आती क्यों हमको।
न उचित मजूरी देते उसको।।
‘विनयचंद ‘ वो भी मानव है
उसका नित सत्कार करो।
उसका भी एक परिवार है
,सेवक बन आधार बनो।।