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वजूद

लफ़्ज़ों की कमी थी आज शायद
या रूह में होने वाले एहसास की
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नही पता मुझको कहानी तेरी शायद
बस इतना जानती हूं कि वजूद को तेरे

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तूझसे ज्यादा जानती हूं शायद
ख्वाबबगाह में जो बसता है वो
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अलग सी खुमारी और कशिश शायद
मेरे रोम रोम में बसी है जो
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कैसे बताऊं तुमको क्या रूमानी एहसास है वो
कैसे यकीं दिलाऊं कितना रूमानी है वो
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बिन फरेब कितना मासूम है वो
किसी ख्वाबगाह का सरताज हो शायद

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