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वसुधा को हरा-भरा बनाए हम

जब सांसे हो रही है कम ,आओ फिर से वृक्ष लगाएं हम,
आओ नमन करे हम वसुधा, को जो मिटाती है हम सबकी क्षुधा को,
जो बिना भेदभाव हम सबको पाले,वह भी चाहे पेड़ों की बहुधा को,
नये पेड़ों को फिर से रोपकर, इसे फिर बनाए रत्नगर्भा हम,
आओ फिर से वृक्ष लगाएं हम।
एक अकेले से कुछ ना होगा,हमें चाहिए सबका साथ,
पृथ्वी मां की रक्षा को फिर से बढ़ाओ अपने हाथ,
फिर कमी न कुछ जीवन में होगी,होगी तरक्की दिन और रात,
खुद जागें औरों को भी जगाए हम,
आओ फिर से वृक्ष लगाएं हम।
मानो तो माटी है मानो तो यह है चंदन,
हम सब मां को मनाएंगे और करेंगे फिर से वंदन,
पृथ्वी को हरा-भरा करने को निछावर कर दें अपना तन मन,
पृथ्वी मां जब मुस्काएगी तब दूर होंगे सारे गम,
आओ फिर से वृक्ष लगाएं हम।
ऑक्सीजन की कमी यूं बनी हुई,सांसे यूं सबकी थमी हुई,
लोगों का बिछड़ना शुरू हुआ,आंखों में फिर से नमी हुई,
ऑक्सीजन की कमी को दूर करें यूं हम,
आओ फिर से वृक्ष लगाएं हम।
जब धरती मां मुस्काएगी,परेशानियां स्वयं दूर हो जाएंगी,
एक दिन की तो यह बात नहीं,होगी यदि इनकी देखभाल जीवन में खुशियां आएंगी,
एक दिन के पृथ्वी दिवस से क्या होगा,आओ रोज पृथ्वी दिवस मनाएं हम।
आओ फिर से वृक्ष लगाएं हम।।
(पृथ्वी दिवस पर रचित मेरी कविता का संपूर्ण अंश प्रेषित ना होने के कारण मैं यह कविता आज पुनः प्रेषित कर रही हूं।)

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