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विधवा स्त्री: “रूठ गई जबसे है चूड़ी

कैसा जीवन
हाय ! तुम्हारा
ना चूड़ी ना
गजरा डाला
पैरों की पायल भी रूठी
घुंघरू टूटा,
चूड़ी टूटी
जो देखे वो
कहे अभागन
जब चले गये हैं साजन !
तुझ पर कितने
अत्याचार हुए
कटु वचनों के बाणों के
बौछार हुए
जीवित ही तुझको
सबने मार दिया
तेरे पति के मरने पर
तुझको ही दोष दिया
जो स्त्रियां बैठ बतियाती थीं
संग हँसती थीं,
मुसकाती थीं
अब माने तुझको अपशकुनी
रूठ गई जबसे है चूड़ी…!!

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