हे घनश्याम गोपाल मुरारी।
मेरी सुधि लो गिरिवरधारी।।
दीनबंधु करुणा के सागर।
भगतबच्छल प्रभु आरतहर।।
जगतपति जगतारनहारी,
मेरी सुधि लो गिरिवरधारी।।
तेरी कृपा बरस रही निश-दिन।
बाहर-भीतर किनमिन किनमिन।।
दो बूंद का चातक ‘विनयबिहारी’,
मेरी सुधि लो गिरिवरधारी ।।