अन्तर्मन की वेदना पढ़ ना सके कोय,
मजदूर की मजदूरी दे ना सके कोय।
खून पसीने कौन बहता बैठ कर खाते लोग,
मजदूर की मेहनत को समझ ना सके कोय।।
अन्तर्मन की वेदना पढ़ ना सके कोय,
मजदूर की मजदूरी दे ना सके कोय।
खून पसीने कौन बहता बैठ कर खाते लोग,
मजदूर की मेहनत को समझ ना सके कोय।।