Site icon Saavan

वो डरावना-सा बचपन

सब चाहते हैं,
फिर से वो बचपन पाना,
शरारत से भरी ऑंखें,
और मुस्कुराना,
पर मैं नही चाहती,
वो बचपन पाना,
डर लगता है,
उस बचपन से,
घूरती आँखों,
और उन हैवानों से,
अब है हिम्मत,
हैं डर को जितने का दम,
तब नहीं था, वो मेरे भीतर,
डरती थी, सहमती थी,
बंद कमरे में , सिसकती थी,
चाहती थी, खुलकर हंस सकूँ,
पर न कुछ कह पाना न समझ पाना,
रोना याद कर उन लम्हों को,
और खुद को सजा देना,
मैं नही चाहती वो बचपन पाना,
जहाँ छिनी जाती थी,
पल पल मेरी खुशियां,
जोड़ती थी साहस, की खुद को है,
बचाना,
बचाया खुद को मैंने,
कभी वक़्त ने साथ दिया, कभी दूरियों ने,
कभी अपनों ने, कभी परायो ने,
कोमल मन पर , वो डर का साया,
मैं नही चाहती वो बचपन दोहराना।।।।

Exit mobile version