वो शर्मिंदा नहीं है तो खफा खफा क्यों है
वो शर्मिंदा नहीं है तो खफा खफा क्यों है
जाना चाहता है वो मगर रुका क्यों है ?
जिसके आगे पत्थर सा बना रहता जमाना है
उसकी छत पे ये अंबर झुका झुका क्यों है ?
हिज्र की आरजू मुझसे फकत करता है मेरा रब
एक उसके ही दरवाज़े अभी रुका क्यों है ?
है दीवानों में गिनती उसके हरगिज जानते हैं हम
मेरे बाद मुझ पर ही मगर रुका क्यों है ?
ये जिस्म पहले तो उदासी ओढ़ लेता था
ये हुस्न तौबा अब छका छका क्यों है ?
लगता है उसको चूम कर आई हवाएं हैं
सवालात करती हैं खुदा खुदा क्यों है ?
आमद हो गई है उसकी मेरे शहर में क्या
कलेजे से ये दम मेरा निकल रहा क्यों है ?
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