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श्रधांजलि

आवो !

हम सब नमन करें

भारत के वीर सपूतो का !

जिनने आज़ादी के हवन कुंड में

अपना सब कुछ होम दिया

आवो !

हम सब नमन करें

भारत के वीर शहीदों का !

जो नित्य बलिदान दे रहे

सीमा पर अपने प्राणों का !

आज़ादी की रक्षा खातिर

आवो उनकी आवाज़ सुने

पर्वतों के पार से

सीमा के हम पहरेदार

पड़े रहते

खुले मैदानों में

नंगी चट्टानों पर

बर्फ की सिल्लियों पर

या कभी

धूल रेत के

कोमल गद्दों पर

चाँद तारों की महफ़िल को

निहारते

साथ ही निहारते

पर्वतों के पार

सीमा के हम पहरेदार

झेलते

सर्द बर्फीली हवा को

धूल रेत की आंधी को

या कभी

नभ से हो रहे हिमपात को

मूक बने देखते

प्रकृति के व्यापार को

साथ ही निहारते

पर्वतों के पार

सीमा के हम पहरेदार

हड्डियो के जोड़ जोड़ काँप रहे

पोर पोर सिहर रहे देह के

या कभी

बर्फ के तूफ़ान में फँसे

कड़कड़ाती सर्दियों से जूझते

बर्फ को निहारते

साथ ही निहारते

पर्वतों के पार

सीमा के हम पहरेदार

रक्त लाल बर्फ बने

नैन नीर शून्य बने

या कभी

नैन ज्योति शून्य बने

हवा विहीन शून्य में निहारते

साथ ही निहारते

पर्वतों के पार

सीमा के हम पहरेदार

कट जाय हाथ मोह नहीं

कट जाय पैर मोह नहीं

या कभी

पुरुषत्व भी सदैव के लिए मिटे

देश अर्थ मिट रहे लुट रहे

स्वयं को निहारते

साथ ही निहारते

पर्वतों के पार

सीमा के हम पहरेदार

दुश्मनों को रोकने को

पत्थरें खड़ी हुई

गोलियों को रोकने को

छातियाँ अड़ी हुई

या कभी

दुश्मनों को चीरने को

आरियां खड़ी हुई

गोलियों से जूझते

देश को निहारते

साथ ही निहारते

पर्वतों के पार

सीमा के हम पहरेदार

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