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सच्ची राह पे अगर….

सच्ची राह पे अगर  तेरा  एक कदम भी नेकी से पड़ा है।

तो  अगले ही  कदम पे  तेरा रब तेरे साथ में खड़ा है।

 

उसकी  फिक्र का  दिखावा करने वाले तो गुम हो गये

लेकिन  सच्ची  फिक्र  वाला अभी  भी  उसके  साथ में खड़ा है।

 

ऩफरत के  जबरदस्त  हमलों से भी  वो कभी हुआ

जो कमयाब असर  अब प्रेम के अधभुत बाण से पड़ा है।

 

वो जिंदगी में  सकून कभी  किस तरह कमा सकता है

हमेशा से ही लालच का सिक्का जिसके मन में जड़ा है।

 

उद्दण्डता जो की थी पहले उसने वो अब माफ हो गई

क्योंकि अब वो  पक्केपन से  अपनी मर्यादा पे अड़ा है।

 

दोनों की परिसीमाऐं  काफी नज़दीक लगती हो लेकिन

बेवकूफी और बेकसूरी  में फर्क तो वाकई बहुत बड़ा है।

 

वो तो जिंदगी में भी कभी  मुश्किल ही  जाग पाएगा

अलार्म के बिना  जो आँख खुलने पे भी सोया पड़ा है।

 

कारीगर  या  मालिक के हुक्म पे आखिर  मरना ही है

ये  मजदूर  का  नाम   मज़दूर   यूं  ही  थोड़े  पड़ा  है।

 

जग ने उसकी तनक़ीद करने में  कोई कसर छोड़ी

जग को सँवारने का भूत  जिस  बंदेके सिर पे  चढा है।

 

                                                                कुमार बन्टी

 

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