सभी इल्ज़ाम शीशे पर ये जग कबतक लगायेगा

सभी  इल्ज़ाम  शीशे  पर  ये  जग कबतक लगायेगा ,

भला।  नाकामियों   को   वो   यहाँ   कैसे   छुपायेगा ।

 

तुम्हारा  है  तुम्ही  रख  लो  उजाला  और  सूरज भी ,

हमारा   यार   जुगनू    है    हमें    रस्ता    दिखायेगा ।

 

चरागों   के   लिए   मैंने   हवा   से  दुश्मनी  कर  ली ,

मुझे  क्या  था  पता  वो  तो  मेरा  ही  घर  जलायेगा ।

 

सही  मंज़िल  हकीकत  में  उसे  हासिल  नहीं  होगी ,

कभी जो साजिशों को कर किसी का दिल दुखायेगा ।

 

बिना  मतलब  उफनता  है  मियाँ  खारा  समंदर भी ,

किसी  प्यासे  शज़र  की  आग  दरिया  ही बुझायेगा ।

 

जिसे   कंधे  बिठाकर  आज  दरिया  पार  करवाया ,

यक़ीनन  पीठ  पर  वो   ही  कभी  खंज़र  चलायेगा ।

 

हमारे  हौंसले  का  इस  कदर  जो   खूँन  कर  बैठा ,

मियाँ  क्या  खाक  रिश्ता  दोस्ती  का  वो निभायेगा ।

 

यक़ीनन  भूलना  उसको  नहीं  आसान  होगा  फिर ,

मेरी  महफ़िल में आकर जो कभी दो पल बितायेगा ।

 

हरेन्द्र सिंह कुशवाह

~~~एहसास~~~

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