तुम मुझे ओढ़ लो और मैं तुम्हें ओढ़ लेता हूँ,
सर्दी के मौसम को मैं एक नया मोड़ देता दूँ।
ये लिहाफ ये कम्बल तुम्हें बचा नहीं पाएंगे,
अब देख लो तुम मैं सब तुमपे छोड़ देता हूँ।
सर्द हवाओ का पहरा है दूर तलक कोहरा है,
जो देख न पाये तुम्हे मैं वो नज़र तोड़ देता हूँ।
लकड़ियाँ जलाकर भी माहोल गर्म हुआ नहीं,
एक बार कहदो मैं नर्म हाथों को जोड़ देता हूँ।
ज़रूरत नहीं है कि पुराने बिस्तर निकाले जाएँ,
सहज ये रहेगा मैं जिस्मानी चादर मरोड़ देता हूँ।।
राही अंजाना